Bhagwat Geeta Shlok in Sanskrit, Hindi and English

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Bhagwad Geeta Ke Updesh in Hindi – भगवद गीता के उपदेश हिंदी में

Bhagwat Geeta Shlok: श्रीमद भगवद गीता केवल भारतवर्ष में ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व में प्रसिद्द है। यह एक सनातम धर्म की पुस्तक है जिसमें महाभारत युद्ध के समय भगवान श्रीकृष्ण द्वारा धनुर्धर अर्जुन को दिए गए उपदेशों और श्लोक का संग्रह है। जब महाभारत रणभूमि पर अर्जुन युद्ध के विचार से विचलित हो रहे थे, तभी श्रीकृष्ण भगवान् नें अर्जुन को Bhagwat Geeta Shlok सुनाकर उनका मार्गदर्शन किया था।

Bhagwat Geeta Shlok में करीब 700 श्लोकों का संग्रह है जो कि संस्कृत भाषा में लिखे गए हैं। गीता श्लोक की इस पुस्तक को सम्पूर्ण विश्व के विद्वान् पढ़ते है और इसका अनुसरण करते हैं। भगवत गीता श्लोक में इतनी ताकत है इनके उच्चारण मात्र से हमारी सभी समस्याओं का समाधान बड़ी शीघ्रता से हो जाता है। इसके अलावा भगवत गीता के पढने के फायदे बहुत सारे हैं इसलिए यदि आप भगवत गीता पढने के नियम से परिचित हैं तो निश्चित ही इसका लाभ उठा पाएंगे।

गीता श्लोक के इस लेख में हम आपके लिए Bhagawat Geeta Ke Shlok हिंदी, इंग्लिश और संस्कृत भाषा में ले कर आये हैं। इसलिए लेख को अंत तक पढ़िए, इसमें आपके लिए कोई न कोई गीता श्लोक ज़रूर काम आयेगा और आप अपने समस्याओं से निदान पा सकेंगे। हमने नीचे एक लिंक भी दिया है जिससे आप Shrimad Bhagwat Geeta in Hindi pdf​ (Bhagwat Geeta PDF) के 700 श्लोक डाउनलोड कर पाएंगे।

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Shreemad Bhagvat Geeta Updesh in Hindi Download link:​ 700 गीता श्लोक डाउनलोड लिंक

Shrimad Bhagwat Geeta Book in Hindi pdf Download- Geeta Press

गीता प्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद भगवद गीता श्लोक (Shreemad Bhagvad Geeta Shlok​) की पुस्तक हिंदी में डाउनलोड करने का लिंक नीचे दिया गया है:

Geeta Saar में से मुख्य श्रीमद भगवत गीता श्लोक (Categorized)

लोकप्रिय गीता श्लोक – Famous Geeta Shlok

Bhagwat Geeta Quotes in Hindi, English and Sanskrit- गीता श्लोक

  • कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥
    (द्वितीय अध्याय, श्लोक 47)

अर्थ: कर्म पर ही तुम्हारा अधिकार है, कर्म के फलों में कभी नहीं। इसलिए कर्म करते जाओ और फल की चिंता छोड़ दो।

Meaning: You have the right to perform your duties, but not to the results. Never be attached to the outcomes or stop doing your work.

गीता श्लोक नंबर 15 – Geeta Shlok 15
  • यस्मान्नोद्विजते लोको लोकान्नोद्विजते च य:। हर्षामर्षभयोद्वेगैर्मुक्तो य: स च मे प्रिय:॥
    (द्वादश अध्याय, श्लोक 15)

अर्थ: जिस व्यक्ति से किसी को भी कष्ट नहीं पहुंचता है, जो अन्य किसी व्यक्ति द्वारा विचलित नहीं होता, जो हर एक परिस्थिति जैसे सुख दुःख, भय, चिंता आदि में एक जैसा रहता है, वही व्यक्ति मुझे बहुत प्यारा है।

Meaning: The person who neither troubles others nor gets troubled by them, who is free from joy, anger, fear, and anxiety, is dear to me.

गीता श्लोक नंबर 37 – Geeta Shlok 37
  • हतो वा प्राप्यसि स्वर्गम्, जित्वा वा भोक्ष्यसे महिम्। तस्मात् उत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चय:॥
    (द्वितीय अध्याय, श्लोक 37)

अर्थ: अर्जुन, यदि युद्ध में तुम वीरगति को प्राप्त होते हो तो तुम्हे स्वर्ग मिलेगा, और यदि तुम इस युद्ध में विजय प्राप्त करते हो तो इस पृथ्वी पर सुख पाओगे। इसलिए हे कुन्तीपुत्र अर्जुन, उठो और निश्चय करके युद्ध करो।

Meaning: If you die, you will attain heaven; if you win, you will enjoy the earth. So, rise and be ready for battle.

गीता श्लोक नंबर 62 – Geeta Shlok 62
  • ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते। सङ्गात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते॥
    (द्वितीय अध्याय, श्लोक 62)

अर्थ: विषय वस्तुओं का निरंतर चिंतन करने से मनुष्य को उनसे लगाव हो जाता है। इससे उन्हें पाने की इच्छा उत्पन्न होती है, और यदि यही इच्छाएं पूर्ण नहीं होती हैं और विध्न बाधाएं आती हैं तो इससे क्रोध पैदा होने लगता है।

Meaning: Thinking about worldly pleasures leads to attachment, attachment gives rise to desire, and desire results in anger.

गीता श्लोक नंबर 26 – Geeta Shlok 26
  • पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति। तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मन:॥
    (नवम अध्याय, श्लोक 26)

अर्थ: जब कोई उपासक या भक्त बड़े प्यार से फल, फूल, पानी, पत्तियां आदि मुझे अर्पण करता है तब मैं सद्गुण रूप में आकर उस शुद्ध ह्रदय वाले निष्काम भक्त द्वारा अर्पण किये गए पत्ती, पुष्प आदि को प्रेम पूर्वक खाता हूँ।

Meaning: Whoever offers me a leaf, a flower, a fruit, or water with devotion, I accept it.

गीता श्लोक नंबर 63 – Geeta Shlok 63
  • क्रोधाद्भवति संमोह: संमोहात्स्मृतिविभ्रम:। स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥
    (द्वितीय अध्याय, श्लोक 63)

अर्थ: क्रोध से भ्रम उत्पन्न होता है, भ्रम से स्मृति का नाश होता है, स्मृति के नाश से बुद्धि का विनाश होता है, और बुद्धि के नष्ट होने से व्यक्ति का पतन हो जाता है।

Meaning: Anger leads to confusion, confusion destroys memory, loss of memory weakens intellect, and a weakened intellect ruins a person.

गीता श्लोक नंबर 21 – Geeta Shlok 21
  • यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन:। स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते॥
    (तृतीय अध्याय, श्लोक 21)

अर्थ: जो श्रेष्ठ व्यक्ति करता है, वही आम लोग भी करते हैं। वह जैसा आदर्श प्रस्तुत करता है, लोग उसका अनुसरण करते हैं।

Meaning: Whatever a great person does, others follow. The standard they set becomes the norm for society.

गीता श्लोक नंबर 23 – Geeta Shlok 23
  • नैनं छिद्रन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक:। न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत॥
    (द्वितीय अध्याय, श्लोक 23)

अर्थ: आत्मा को न शस्त्र काट सकते हैं, न आग जला सकती है, न पानी गीला कर सकता है, और न वायु सुखा सकती है।

Meaning: The soul cannot be cut by weapons, burned by fire, wetted by water, or dried by air.

गीता श्लोक नंबर 7 – Geeta Shlok 7
  • यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत:। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥
    (चतुर्थ अध्याय, श्लोक 7)

अर्थ: जब-जब धर्म का ह्रास और अधर्म का उत्थान होता है, तब-तब मैं जन्म लेता हूँ।

Meaning: Whenever righteousness declines and unrighteousness rises, I manifest myself.

गीता श्लोक नंबर 8 – Geeta Shlok 8
  • परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्। धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे-युगे॥
    (चतुर्थ अध्याय, श्लोक 8)

अर्थ: साधुओं की रक्षा, दुष्टों का नाश, और धर्म की स्थापना के लिए मैं हर युग में जन्म लेता हूँ।

Meaning: To protect the good, destroy the wicked, and establish righteousness, I incarnate in every age.

गीता श्लोक नंबर 39 – Geeta Shlok 39
  • श्रद्धावान्ल्लभते ज्ञानं तत्पर: संयतेन्द्रिय:। ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति॥
    (चतुर्थ अध्याय, श्लोक 39)

अर्थ: श्रद्धा रखने वाला, इंद्रियों को वश में रखने वाला व्यक्ति ज्ञान प्राप्त करता है और उस ज्ञान से परम शांति को प्राप्त करता है।

Meaning: A person with faith and self-control attains knowledge, and with that knowledge, they achieve supreme peace.

गीता श्लोक नंबर 66 – Geeta Shlok 66
  • सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज। अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच:॥
    (अठारहवां अध्याय, श्लोक 66)

अर्थ: चिंता मत करो, सभी धर्मों को त्यागकर मेरी शरण में आओ। मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्त कर दूंगा।

Meaning: Abandon all duties and surrender to me. I will free you from all sins; do not worry.

Bhagwat Geeta Adhyay 1 के टॉप 3 श्लोक

भगवद गीता प्रथम अध्याय ‘अर्जुन विषाद योग (Arjun Vishada Yoga)’ के नाम से जाना जाता है। इसमें कुल 47 श्लोक हैं जिसमें कृक्षेत्र की भूमि पर अर्जुन और भगवान् श्रीकृष्ण के बीच हुए संवादों का जिक्र है। युद्ध करें या न करें, अर्जुन इसी दुविधा में थे, गीता के पहले अध्याय में इसी सन्दर्भ में श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच हुए वार्तालाप का उल्लेख किया गया है। कुछ प्रमुख श्लोक इस प्रकार हैं:

Geeta Shloka 1

Sanskrit: धृतराष्ट्र उवाच | धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः | मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय ||

Hindi Meaning: धृतराष्ट्र ने कहा: हे संजय! धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में जहाँ पांडव और कौरव युद्ध की इच्छा से एकत्रित हुए हैं, वहाँ मेरे और पांडवों ने क्या किया, यह मुझे बताओ।

English Meaning: Dhritarashtra said: O Sanjaya, in the holy land of Kurukshetra, where the sons of Pandu and Kaurava have gathered with the desire to fight, what did they do? Please tell me.

Geeta Shloka 2

Sanskrit: नैतिकं योधयोधं महं पाण्डुर्मामकं च | धृतराष्ट्रं कृतं च अप्रत्यास्त्रं रथात्तम ||

Hindi Meaning: पाण्डवों और कौरवों के बीच युद्ध की शुरुआत हुई, और अर्जुन अपने रथ से उतरे। उनके पास यह अद्वितीय उद्देश्य था कि युद्ध को समाप्त किया जाये।

English Meaning: The battle between the Pandavas and Kauravas began, and Arjuna stepped down from his chariot with a unique resolve to stop this war.

Geeta Shloka 3

Sanskrit: सञ्जय उवाच | दृष्ट्वा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा | आचार्यमुपसंगम्य राजा वचनमब्रवीत ||

Hindi Meaning: सञ्जय ने कहा: फिर दुर्योधन ने पाण्डवों की सेना का विभाजन देखा, और वह आचार्य द्रोण के पास गया और उन्हें यह वचन दिया।

English Meaning: Sanjaya said: Seeing the arrangement of the Pandava army, Duryodhana approached his teacher Drona and spoke these words.

भगवद गीता में कुल 18 अध्याय हैं। प्रत्येक अध्याय का एक विशेष विषय और उद्देश्य है। गीता में श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए उपदेश जीवन, धर्म, कर्म, और मोक्ष के गहन रहस्यों को उजागर करते हैं।


1. अर्जुन विषाद योग (Chapter 1)- भगवत गीता अध्याय 1

  • विषय: अर्जुन का मोह और शोक।
  • संक्षिप्त विवरण: अर्जुन युद्ध के मैदान में अपने रिश्तेदारों और गुरुओं के खिलाफ लड़ने के लिए असमंजस और शोकग्रस्त हो जाता है। वह अपने कर्तव्यों को लेकर दुविधा में पड़ जाता है।

2. सांख्य योग (Chapter 2)- भगवत गीता अध्याय 2

  • विषय: आत्मा का ज्ञान और कर्म का महत्व।
  • संक्षिप्त विवरण: श्रीकृष्ण अर्जुन को आत्मा की अमरता का ज्ञान देते हैं और कर्म करने की आवश्यकता पर बल देते हैं, बिना फल की चिंता किए।

3. कर्म योग (Chapter 3)- भगवत गीता अध्याय 3

  • विषय: निष्काम कर्म का महत्व।
  • संक्षिप्त विवरण: इस अध्याय में कर्म करने की अनिवार्यता और कर्तव्य पालन की व्याख्या की गई है। फल की इच्छा से मुक्त होकर कर्म करने को बताया गया है।

4. ज्ञान योग (Chapter 4)- भगवत गीता अध्याय 4

  • विषय: ज्ञान और त्याग का महत्व।
  • संक्षिप्त विवरण: श्रीकृष्ण ज्ञान और आत्म-साक्षात्कार की महत्ता बताते हैं और यह समझाते हैं कि ज्ञान कैसे व्यक्ति को कर्मबंधन से मुक्त करता है।

5. कर्म संन्यास योग (Chapter 5)- भगवत गीता अध्याय 5

  • विषय: कर्म और संन्यास के बीच सामंजस्य।
  • संक्षिप्त विवरण: कर्मयोग और संन्यास के महत्व की तुलना करते हुए कर्मयोग को श्रेष्ठ बताया गया है।

6. ध्यान योग (Chapter 6)- भगवत गीता अध्याय 6

  • विषय: योग और ध्यान।
  • संक्षिप्त विवरण: आत्म-संयम, योग की विधि, और ध्यान द्वारा आत्मा की प्राप्ति का वर्णन किया गया है।

7. ज्ञान-विज्ञान योग (Chapter 7)- भगवत गीता अध्याय 7

  • विषय: ज्ञान और विज्ञान।
  • संक्षिप्त विवरण: श्रीकृष्ण परमात्मा के ज्ञान और भौतिक व आध्यात्मिक संसार के रहस्यों को प्रकट करते हैं।

8. अक्षर-ब्रह्म योग (Chapter 8)- भगवत गीता अध्याय 8

  • विषय: मृत्यु के समय का ध्यान।
  • संक्षिप्त विवरण: श्रीकृष्ण मृत्यु के समय भगवान का स्मरण करने की महत्ता और आत्मा की यात्रा का वर्णन करते हैं।

9. राजविद्या-राजगुह्य योग (Chapter 9)- भगवत गीता अध्याय 9

  • विषय: भक्ति का रहस्य।
  • संक्षिप्त विवरण: भक्ति योग को सबसे गूढ़ और श्रेष्ठ मार्ग बताया गया है।

10. विभूति योग (Chapter 10)- भगवत गीता अध्याय 10

  • विषय: भगवान की विभूतियां।
  • संक्षिप्त विवरण: श्रीकृष्ण अपनी दिव्य विभूतियों और चमत्कारी शक्तियों का वर्णन करते हैं।

11. विश्वरूप दर्शन योग (Chapter 11)- भगवत गीता अध्याय 11

  • विषय: भगवान का विश्वरूप दर्शन।
  • संक्षिप्त विवरण: श्रीकृष्ण अर्जुन को अपना विराट रूप दिखाते हैं, जो सृष्टि के सम्पूर्ण रूप को प्रकट करता है।

12. भक्ति योग (Chapter 12)- भगवत गीता अध्याय 12

  • विषय: भक्ति का मार्ग।
  • संक्षिप्त विवरण: श्रीकृष्ण भक्ति योग के महत्व और उसके फलों का वर्णन करते हैं।

13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग (Chapter 13)- भगवत गीता अध्याय 13

  • विषय: शरीर और आत्मा का भेद।
  • संक्षिप्त विवरण: शरीर (क्षेत्र) और आत्मा (क्षेत्रज्ञ) के बीच के अंतर को समझाया गया है।

14. गुणत्रय विभाग योग (Chapter 14)- भगवत गीता अध्याय 14

  • विषय: प्रकृति के तीन गुण।
  • संक्षिप्त विवरण: सत्व, रजस और तमस गुणों की व्याख्या और उनके प्रभावों का वर्णन किया गया है।

15. पुरुषोत्तम योग (Chapter 15)- भगवत गीता अध्याय 15

  • विषय: परम पुरुष की महिमा।
  • संक्षिप्त विवरण: सृष्टि के मूल स्वरूप और परमात्मा की महत्ता को बताया गया है।

16. दैवासुर सम्पद विभाग योग (Chapter 16)- भगवत गीता अध्याय 16

  • विषय: दैवी और आसुरी गुण।
  • संक्षिप्त विवरण: मनुष्य के भीतर के दैवी और आसुरी गुणों का वर्णन और उनका प्रभाव बताया गया है।

17. श्रद्धात्रय विभाग योग (Chapter 17)- भगवत गीता अध्याय 17

  • विषय: श्रद्धा के प्रकार।
  • संक्षिप्त विवरण: श्रद्धा के तीन प्रकार – सत्वगुणी, रजोगुणी और तमोगुणी श्रद्धा की व्याख्या की गई है।

18. मोक्ष संन्यास योग (Chapter 18)- भगवत गीता अध्याय 18

  • विषय: मोक्ष और संन्यास।
  • संक्षिप्त विवरण: श्रीकृष्ण गीता के सभी योगों का सार बताते हैं और निष्काम कर्म से मोक्ष प्राप्ति का मार्ग समझाते हैं।

निष्कर्ष: गीता के ये 18 अध्याय जीवन को समझने, आत्मा का ज्ञान प्राप्त करने, और मोक्ष के मार्ग को दिखाने वाले अनमोल उपदेशों का संग्रह हैं।